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सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है-sarasvatee ko hee gyaan kee devee kyon maana jaata hai-

  सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है- sarasvatee ko hee gyaan kee devee kyon maana jaata hai- पुराणों व अन्य धर्मशास्त्रों में म...

 

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सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है-sarasvatee ko hee gyaan kee devee kyon maana jaata hai-

पुराणों व अन्य धर्मशास्त्रों में माँ सरस्वती को सतोगुण का प्रतीक माना गया है। इसी प्रकार विद्या व ज्ञान को भी सतोगुण माना गया है। मां सरस्वती सतोगुण की अधिष्ठातृ देवी हैं।

चूंकि भगवती सरस्वती सतोगुणी हैं, अतः सतोगुण के प्रतीक विद्या या ज्ञान की देवी इन्हें ही माना गया है।मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है।

प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हीं से हुआ है। सात

प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणावस्था हैं। 

वीणावादन शरीरयंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है। इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है। साम-संगीत के सारे विधि-विधान एकमात्र वीणा में सन्निहित हैं। मार्कण्डेयपुराण में कहा गया है कि नागराज अश्वतारा और उसके भाई काम्बाल ने सरस्वती से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। बाकू (वाणी) सत्त्वगुणी सरस्वती के रूप में प्रस्फुटित हुआ।

सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्त्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने इसी की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है।

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